प्रेस-नोटः 14 मार्च 2014
डॉक्टरों की समझदारी मरीज़ों को आर्थिक नुकसान से बचा सकती है!
आज
के भ्रष्टाचारी माहौल और भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था की वजह से अधिकांशतः अधिकारी व
कर्मचारी, उपभोक्ताओं, मरीजों व पीड़ितों की आर्थिक हालातों को देखे व समझे बिना उन्हें
दफ्तरों, अस्पतालों व पुलिस थानों के चक्कर कटवाने का कार्य करते है| जिसकी वजह से
आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति दूरी, आवागमन व ठहरने की व्यवस्था में होने वाले खर्चों
की वजह से अपने जीवनोपयोगी(जैसे- बिमारी का इलाज, आवश्यक सर्टिफिकेट लेना या आरोपी
को सज़ा दिलवाते हुये इन्साफ पाना आदि) जरूरी कार्यों को करने से पीछे हट जाते हैं|
आज अगर यह अधिकारी कुछ समझदारी का परिचय दें तो ये शोषित या मजबूर व्यक्ति बिना वजह
आर्थिक तंगी के शिकार नहीं हो पायेंगे और अपने कार्यों को समय पर निबटाने या पूर्ण
करने के लिये तत्पर रहेंगे|
संगठन
के पास ऐसा ही एक मामला "नेहरू अस्पताल, चंडीगढ"http://pgimer.edu.in/PGIMER_PORTAL/PGIMERPORTAL/home.jsp#
का आया जिसमें एक मरीज मोनिका रानी(17 वर्षीय) पुत्री श्री. सुखदेव कुमार पताः गांव
सिंहेवाला, मोगा की रहनेवाली है| मरीज की एक आँख में मोतियाबिंद
है और दूसरी आँख से बहुत कम दिखाई देता है जिसके ईलाज व ऑपरेशन के लिये इन्हें मोगा
से चंडीगढ़ के अस्पताल तक का सफर करना पड़ता है जिसमें इस परिवार के आने-जाने के एक समय
का खर्चा लगभग 1000/- रु.के आसपास पड़ जाता है|
अगर
अस्पताल की प्रशासनिक व्यवस्था ऐसे मरीजों की आर्थिक स्थिती को ध्यान में रखते हुये
उन्हें बिना वजह अस्पताल बुलाये जाने की बजाये एक या दो बार में ही आवश्यक परीक्षण
कर के जल्द से जल्द मरीज के ईलाज से संबंधित निर्णय ले सकें, ऐसी व्यवस्था अस्पताल
को करनी चाहिये| मगर हमारे देश में ऐसे सरकारी अधिकारी या प्रशासनिक व्यवस्था के अधिकारी
खुद का तो अपनी सुविधानुसार(उनको खुद को किसी प्रकार का आर्थिक नुकसान न हो और न ही
खुद के रहन-सहन व मनोरंजन पर रूकावट आये) व्यवस्था कर लेते हैं| मगर यही व्यवस्था
वे अपने-अपने उपभोक्ताओं, मरीजों या इन्साफ के लिय