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देवघर के पाखंडी पंडे या भू-माफिया!

आज नरेन्द्र मोदी के नाम पर देश में धर्म और हिन्दुत्व को हवा दी जा रही है, युवाओं को हिन्दुत्व के नाम पर एक होने की सलाह दी जा रही है और वे अंधभक्ति में लीन होकर हिन्दुत्व-हिन्दुत्व का राग अलाप रहे हैं| मगर हम सबको यह जानना अतिआवश्यक भी है और हम में से कई यह जानते भी हैं, कि हिन्दुत्व और उसकी आस्था को डुबोने का काम इन हिन्दुत्व के ठेकेदारों ने ही किया है| यह लोग मन्दिरों, आश्रमों व बड़े-बड़े धर्म संस्थानों में धर्म के ठेकेदार बन कर बैठ गये हैं,  सही मायने में ये "धार्मिक गुरु" नहीं बल्कि गली-मौहल्ले के "गुंडे-मवाली व भू-माफिया" हैं, जिन्होंने अपने धन व बल का उपयोग करके इन संस्थानों में लगभग कब्जा सा कर लिया है| असली धर्म के वे विद्वान जो कभी हिंसा, जात-पात व ऊँच-नीच को अपने से दूर रखते थे, उन्हें इन गुंडों बदमाशों ने धार्मिक संस्थानों से लगभग खदेड़ सा दिया है जिसकी वजह से देश के 80% से 90% संस्थानों में इन गुंडे-मवालियों व भ्रष्ट नेताओं का कब्जा सा हो गया है| जिसके लिये यह पोस्ट पढिये- स्वामी दयानंद सरस्वती के सपनों का "आर्य समाज" क्या यह था?

जब ऐसे संस्थानों में "ढोंगी-पाखंडी" किस्म के "साधू महात्माओं" का कब्जा हो गया हो, तो हिन्दुत्व की रक्षा आखिर कौन कर पायेगा? इन पाखंडियों ने "संस्थानों व आश्रमों" की उन जगहों को अपनी "धन-लोलुपता" का स्थल बना कर रख लिया है| सही मायने में ईमानदारी से अगर हम इन पाखंडियों की दिनचर्या पर नज़र रखें तो इनका पाखंड खुलकर जनता के सामने दिखाई देने लगेगा| देश में जगह-जगह पंडा समाज और साधु समाज में घुलमिल गई पाखंडियों की जमात ने पंडों और साधू-सन्यासियों के नाम को पूरी तरह से बदनाम कर दिया है|

संगठन के सामने ऐसा ही एक मामला आया है लीलामन्दिर आश्रम, कबिलासपुर, झारखण्ड का| जिसमें होने वाली संदिग्ध गतिविधियाँ पूर्णरूप से यह दर्शा रही हैं, कि आश्रम के अध्यक्ष स्वामी ध्यानचैतन्य जी ने क्षेत्र के भू-माफिया धर्मानंद झा और शिवानन्द झा जैसे पाखंडी पंडों के साथ मिलकर (संदेह है, कि मिले हुए हैं या फिर भयभीत हैं) ठाकुर दयानंद देव द्वारा 1921 में स्थापित आश्रम की जमीनों पर कब्जा करके बेचने का कार्य कर रहे हैं| लीलामंदिर आश्रम की स्थापना ठा

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